मुझे खबर थी वो मेरा नहीं पराया था
पर धड़कनों ने उसी को खुदा बनाया था
मैं ख़्वाब-ख़्वाब जिसे ढूंढता फिरा बरसों
वो अश्क़-अश्क़ मेरी आँख में समाया था
तेरा कुसूर नहीं जान मेरी तन्हाई
ये रोग मैने ही खुद जान को लगाया था
तमाम शहर में एक वो है अजनबी मुझसे
के जिसने गीत मेरा शहर को सुनाया था
उसकी यादों का दिया बुझता नहीं
उसके बिना दीपक भी जलता नहीं
पता था छोड़ देगा वो एक दिन वो अंधरे में,
फिर भी उसके लिए दिल से दीपक जलाया था.
Lata Mangeshkar еще тексты
Оценка текста
Статистика страницы на pesni.guru ▼
Просмотров сегодня: 2