पुरानी तस्वीरों में ऐसा क्या है जो जब दिख जाती हैं तो मैं गौर से देखने लगता हूँ क्या वह सिर्फ़ एक चमकीली युवावस्था है सिर पर घने बाल नाक-नक़्श कुछ कोमल जिन पर माता-पिता से पैदा होने का आभास बचा हुआ है आंखें जैसे दूर और भीतर तक देखने की उत्सुकता से भरी हुई बिना प्रेस किए कपड़े उस दौर के जब ज़िंदगी ऐसी ही सलवटों में लिपटी हुई थी
इस तस्वीर में मैं हूँ अपने वास्तविक रूप में एक स्वप्न सरीखा चेहरे पर अपना हृदय लिए हुए अपने ही जैसे बेफ़िक्र दोस्तों के साथ एक हल्के बादल की मानिंद जो कहीं से तैरता हुआ आया है और एक क्षण के लिए एक कोने में टिक गया है कहीं कोई कठोरता नहीं कोई चतुराई नहीं आंखों में कोई लालच नहीं
यह तस्वीर सुबह एक नुक्कड़ पर एक ढाबे में चाय पीते समय की है उसके आसपास की दुनिया भी सरल और मासूम है चाय के क&